Asur Web Series: Durwasa Rishi jitana Krodh aata hai isako
असुर वेब सीरीज में शुभ के दादाजी शुभ को मनोचिकित्सक के पास जब लेकर जाते है, तब कहते है इसे दुर्वासा ऋषि जितना घुस्सा आता है।
ये दुर्वासा ऋषि कौन थे? Who is Durwasa Rishi?
कहते है दुर्वासा ऋषि भगवान शिव के ११ वे अवतार थे। भगवान शिव के कुल १९ अवतार थे। दुर्वासा ऋषि का अवतार दुनिया में नियम, पालन और सदाचरण (Discipline) के लिए बनाया था।
ये सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग तीनो युग में ज्ञान कि शिक्षा देते आ रहे है। जैसे भगवान शिव को घुस्सा आता था वैसे ही इनको भी घुस्सा आता था। इनके घुस्से को जल्दी शांत करना मुश्किल था।
इनको ज्यादा लोग इनके घुस्से के लिए पहचानते है। इनको इतना घूस्सा आता है कि इन्होंने खुद भगवान शिव के विवाह के दिन ही भगवान शिव को क्रोध में आकर श्राप दिया था।
भगवान शिव को दुर्वासा ऋषि का श्राप
कथा निसार, जब माता सती ने अपने शरीर का त्याग किया था तब उन्होंने हिमाचल में माता पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया था। पुनर्जन्म लेने के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की थी।
तब पार्वती कि तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए थे और उनके साथ विवाह करने के लिए तैयार हुए थे।
भगवान शिव और पार्वती के विवाह की बात सारी जगह फैल गई। सब लोग खुश थे। विवाह का मुहूर्त आया था सारे देवलोक कैलाश पर्वत पर आए थे।
सारे लोग खुशियों में डूबे हुए थे। एक एक कर के लोग आ रहे थे।
तब ऋषि दुर्वासा अपनी मां के साथ आए। उसी वक़्त नारद मुनि उनके सामने प्रकट हो गए और कहने लगे "क्या आप अपनी माता को लेकर छोड़ जाएंगे।"
दुर्वासा ऋषि बोले,"ऐसा क्यों कह रहे हो नारद, मैं और मेरी मां भगवान शिव के शादी में सहभाग लेने आए है।"
तब नारद बोले,"आपको क्रोध जल्दी आता है और आप श्राप भी जल्द बाज़ी में देते है अगर आपको इस विवाह के दौरान क्रोध आ गया तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा। इसीलिए मैं कह रहा हूं।"
दुर्वासा ऋषि बोले,"ऐसा कुछ भी नहीं होगा, मैंने मेरी मा को वचन दिया है कि में कभी क्रोध नहीं करूंगा और में शांति से रहूंगा। तो चिंता करने की बात नहीं है। में क्रोधित नहीं होऊंगा।"
उसी वक़्त नंदीजी वहा पर आते है और ऋषि दुर्वासा और नारद को भगवान शिव के कक्ष में लेकर जाते है।
वहा पर शिवभक्त और देवलोक खुशी से नाचते गाते रहते है। सारे लोग कुछ ना कुछ कर रहे होते है।
तभी उन्ही में से एक शिवभक्त ऋषि दुर्वासा को खींचते है और नाचने गाने के लिए कहते है। उनके साथ हसी मजाक करते है।
पर उनको लगता है कि ये लोग मेरा मजाक उड़ा रहे है। तब वो अपना वचन भूलकर वहा सभी शिवभक्त को श्राप दे देते है कि "सभी शिवगण को देखकर कन्या पक्ष के लोग मूर्छित हो जाएंगे।"
वे वहीं पर नहीं रुकते, भगवान शिव को भी श्राप दे देते है। वे भगवान शिव को कहते है,"इस रूप में तुम्हारा विवाह नहीं होगा।"
इसी से आप सोच सकते है कि ऋषि दुर्वासा को कितना घुस्सा आता होगा।
जैसे ही वे श्राप देते है तब नारद मुनि उनसे बोलते है," है मुनि आपने ये कैसा अनर्थ कर दिया, क्या आप अपने मा को दिए हुए वचन को भूल गए, बड़े मुश्किल से तो भगवान शिव विवाह के लिए मान गए थे, और आपने इनके विवाह पे ही अनर्थ कर दिया।"
दुर्वासा ऋषि के श्राप देने के बाद वहा पर उपस्थित सारे लोग, देवगन, शिवगण चिंतित हो गए। अब आगे क्या होगा?
क्या ये शादी हो पाएगी या नहीं? अब इसपर क्या इलाज है?
इस श्राप से दुर्वासा ऋषि भी पश्चाताप करते है, ये मैंने कैसा घनघोर पाप कर दिया। मेरे घुस्से ने फिर एक बड़ी मुसीबत बना ली।
तब विष्णुजी वहा पर आते है और मुनि दुर्वासा से कहते है,"है मुनि आप चिंतित ना हो, यह सब विधि का विधान है। भगवान शिव का विवाह तो जरूर होगा ये अटल है। सारी चिंता छोड़ो और विवाह की तयारी में लग जाओ"
जब भगवान विष्णु जी ने है यह कह दिया तो सभी लोग खुश हो गए और शिव और पार्वती के विवाह की तैयारी में लग गए।
और भगवान विष्णुजी के कहने के अनुसार शादी भी ही जाती है।
यहां पर आप देख सकते है कि ऋषि दुर्वासा को कितना क्रोध आता है। इसी कि वजह से ऋषि दुर्वासा को पहचानते है।
ऋषि दुर्वासा, राम और लक्ष्मण की कहानी
यह कहानी है उत्तरकांड के वक़्त की। तब ऋषि दुर्वासा भगवान राम को मिलने अयोध्या आते है। उस वक़्त मृत्यु के देवता यम प्रभु राम से मिलने आते है। तब यम कहते है कि हमारी इस बातचीत के दौरान कोई भी अंदर आया तो उसको मृत्यदंड मिलेगा।
तो इसी के चलते प्रभु राम, लक्ष्मण को उनके कमरे के द्वार पे खड़े करते है ताकि कोई भी कमरे में जा ना सके।
पर उसी वक़्त ऋषि दुर्वासा वहा पहुंचते है और लक्ष्मण से कहते है,"मुझे राम से मिलना है।" तब लक्ष्मण उनको रुकने के लिए कहते है।
इससे ऋषि दुर्वासा को घुस्सा आता है और लक्ष्मण से कहते है कि वो सारे अयोध्या को श्राप दे देंगे। अगर उनको अभी राम से नहीं मिलने दिया तो।
तब लक्ष्मण सोचता है कि सारे अयोध्या के लोगोंको श्राप के अलावा मेरी जान भी चली जाए तो चलेगा। और वो कमरे के अंदर जाते है और ऋषि दुर्वासा आए है ये बात बताते है।
प्रभु राम और यम की बाते खतम हो जाती है और यम चले जाते है। उसके बाद प्रभु राम ऋषि दुर्वासा से मिलते है और बादमें वो भी चले जाते है।
उसके बाद प्रभु राम को यम के वचन याद आते है कि कोई भी कमरे में आएगा तो उसको मृत्युदंड दिया जाएगा। तब प्रभु राम चिंता में पर जाते है कि अब क्या करना चाहिए।
वे लक्ष्मण को मारना तो नहीं चाहते पर वचन को भी निभाना चाहते है। तो वे गुरु वशिष्ठ को बुलाते है और जो बात घटी है वो बताते है।
तब गुरु वशिष्ठ एक मार्ग बताते है, लक्ष्मण को अभी इस राज्य से निकाल जाना होगा। उनका यहां पर ना होना भी प्रभु राम के लिए मरने के बराबर है।
तो इसी के चलते लक्ष्मण को अयोध्या छोड़ना पड़ता है और वे सरयू नदी के किनारे बस जाते है।
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